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विवेक सत्य को खोज निकालता है : UPSC 2019 में पूछा गया सवाल ( निबंध )

       विवेक सत्य को खोज निकालता है : UPSC 2019 में पूछा गया सवाल ( निबंध )                  

                      विवेक सत्य को खोज निकालता है !

     सूर्य केंद्र में है या पृथ्वी ? कौन किसका चक्कर लगाता है ? शायद आज किसी व्यक्ति से यह प्रश्न पूछा जाए , तो वह आसानी से इसका जवाब दे सकता है कि सूर्य केंद्र में है । लेकिन इस सत्य पर पहुँचने की राह वर्तमान में जितनी आसान दिखाई देती है , उतनी है नहीं । मध्यकाल तक इस तथ्य को लेकर संभवतः सर्वसम्मति रही होगी कि पृथ्वी केंद्र में है तथा सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है अथवा ऐसा हो सकता है कि जब चर्च या पादरियों ने बता ही दिया है कि पृथ्वी केंद्र में है , तो फिर हमने इस पर संदेह व्यक्त करने की हिम्मत नहीं जुटाई कि इस तथ्य की प्रामाणिकता की जाँच करें । लेकिन कुछ विवेकशील मनुष्यों को इस तथ्य की प्रामाणिकता पर संदेह आया होगा और उनके विवेक ने सत्य की खोज के लिये उन्हें प्रेरित किया होगा ।

         अंतत : वे इस सत्य पर पहुँच ही गए कि ' पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य केंद्र में है तथा पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है । ' परंतु कहा जाता है कि ' सत्य कड़वा होता है । ' जब हमारे सामने सत्य आता है , तो उसे स्वीकारना आसान नहीं होता । मध्यकाल में चर्च की सत्ता को चुनौती देना कितना कठिन था , इस बात को हम अच्छी तरह जानते हैं । इसके बावजूद कॉपरनिकस , ब्रूनों व गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों ने अपने विवेक के बल पर यह खोज करने का प्रयत्न किया कि वास्तव में सत्य क्या है ? और समाज के विपरीत अपने मत का प्रतिपादन किया । ब्रूनो को तो सत्य की खोज के लिये ज़िदा जला दिया गया ।

                इसी क्रम में निबंध के शीर्षक के अनुरूप एक प्रचलित कहानी की भी चर्चा करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है । एक बार एक राजा के दरबार में दो महिलाएँ आईं , जो किसी बच्चे को लेकर अपना - अपना दावा प्रस्तुत कर रही थीं । इस परिस्थिति में राजा के लिये न्याय करना मुश्किल हो गया । आधुनिक काल के समान उस समय डीएनए जैसी टेक्नोलॉजी भी नहीं थी , जिससे समस्या का उचित समाधान किया जा सके तथा न्याय हो सके । अतः राजा ने अपने विवेक का प्रयोग किया और सत्य को खोजने का प्रयत्न किया । राजा ने क्रोधित होकर कहा कि इस बच्चे के तलवार से दो हिस्से कर दिये जाएँ एवं दोनों महिलाओं को एक - एक हिस्सा दे दिया जाए । राजा के इतना कहने पर उनमें से एक महिला ने तुरंत कहा- “ महाराज , आप बच्चे को इस महिला को दे दीजिये । " उस महिला के मुख से ऐसी बात सुनकर राजा समझ गया कि बच्चा किसका है और न्याय सामने आ गया ।

                   उपर्युक्त संदर्भो के आधार पर प्रथम दृष्टया तो यही प्रतीत होता है कि विवेक सत्य को खोज निकालता है । यद्यपि इसका सूक्ष्म विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है । इससे पूर्व , सर्वप्रथम यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि ज्ञान ( Knowledge ) और विवेक ( Wisdom ) दोनों समानार्थी हैं या इनमें अंतर भी विद्यमान है । वस्तुतः वैसे तो सामान्यतः लोग ज्ञान और विवेक को समानार्थी ही मानते हैं । परंतु दोनों में मौलिक असमानता है । ब्रिटिश निबंधकार , दार्शनिक और इतिहासकार ' बट्रेंड रसेल ' अपने निबंध ' Knowledge and Wisdom ' में इनके मध्य अंतर की विस्तृत चर्चा करते हैं । रसेल Knowledge अर्थात् ' ज्ञान ' को डाटा या सूचनाओं के संग्रहण अथवा किसी वस्तु के बारे में प्राप्त जानकारी के रूप में परिभाषित करते हैं । जबकि उनके अनुसार , Wisdom अर्थात् ' विवेक ' अपने अनुभवों व परिश्रम से इन सूचनाओं का व्यावहारिक अनुप्रयोग करने से संबंधित है । 

                                                   विवेक सत्य को खोज निकालता है !

         विशेष बात यह भी है कि इस व्यावहारिक अनुप्रयोग में नैतिक मूल्य अनिवार्यतः शामिल होते हैं । इसके अतिरिक्त विवेक में बुद्धि पक्ष के साथ साथ भावनाओं का भी संतुलित सामंजस्य होता है । स्पष्ट है कि विवेक , ज्ञान से उच्चतम है । विवेक के अभाव में ज्ञान हानिकारक हो सकता है । इसे एक उदाहरण के माध्यम से भलीभाँति समझ सकते हैं- किसी व्यक्ति को परमाणुओं और अणुओं का ज्ञान है , किंतु अगर उसमें विवेक नहीं है , तो हो सकता है कि वह अपने ज्ञान का उपयोग मानवीय सभ्यता के विकास में न करके परमाणु हथियारों का निर्माण करके मानव के विध्वंस में करे । दूसरी तरफ , अगर व्यक्ति में ज्ञान है , और विवेक भी है , तो वह अपने ज्ञान का उपयोग करके नए - नए आविष्कार करने के लिये प्रयत्नशील रहेगा । साथ ही इन आविष्कारों का प्रयोग मानवीय सभ्यता के विरुद्ध न कर उसकी भलाई व प्रगति में करेगा ।

                     इसीलिये प्राचीनकाल से ही भारतीय एवं पश्चिमी दोनों परंपराओं में मनुष्य में ' विवेक - सद्गुण ' के विकास पर अत्यधिक बल दिया जाता है , फिर चाहे वह ' ओल्ड टेस्टामेंट ' हो अथवा भारतीय धर्मग्रंथ । ग्रीक नीतिशास्त्र में सुकरात , प्लेटो एवं अरस्तू तीनों ने नैतिकता के लिये सद्गुणों के विकास को महत्त्व दिया है । प्लेटो की पुस्तक ' द रिपब्लिक ' में वर्णित ' दार्शनिक राजा ' विवेक व ज्ञान से युक्त है । वहीं ' अरस्तू ' ने बौद्धिक सद्गुण में ' विवेक ' को प्रमुख माना है , जो सुकरात के ज्ञान - सद्गुण के नज़दीक है । इसी संदर्भ में सुकरात का प्रसिद्ध कथन भी है- " An unexamined life is not worth living . "

         अब सवाल यह उठता है कि विवेक , सत्य को कैसे खोज निकालता है ? सत्य की खोज के लिये क्या विवेक ही रास्ता उपलब्ध कराता है ? उल्लेखनीय है कि विवेक अनुभव , ज्ञान , नैतिकता से संपृक्त होने के कारण निर्णय की गुणवत्ता को बढ़ा देता है । विवेकशील मनुष्य दूसरों की बातों या अन्य व्यक्तियों के द्वारा बनाए हुए रास्ते का अंधानुकरण नहीं करता है बल्कि अपनी तार्किकता व स्वतंत्र चिंतन से उसे टटोलने का प्रयत्न करता है । जब उसका विवेक इस बात को स्वीकार कर लेता है कि उपर्युक्त बात में सटीकता है , तभी उस बात को स्वीकार करता है या उस रास्ते पर चलता है ।

        उदाहरणस्वरूप , ' नवजागरण ' के दौर में ईश्वरचंद्र विद्यासागर , राजा राममोहन राय , ज्योतिबा फुले इत्यादि समाज - सुधारक अपने विवेक से इस सत्य पर पहुँचे कि सती प्रथा , बाल विवाह , छुआछूत जैसी समस्याएँ भारतीय समाज का सार्वकालिक सत्य नहीं हैं । और न ही ये रूढ़िवादी परंपराएँ अन्यत्र समाज में मौजूद हैं । अतः भारतीय समाज में व्याप्त इन रूढ़िगत प्रथाओं को दूर करने का इन्होंने आह्वान किया । दूसरी ओर ब्रिटिश शासन ' श्वेत नस्ल भार का सिद्धांत ' के तहत भारतीयों पर अपने शासन को वैध बताता रहा । यद्यपि भारतीय बुद्धिजीवियों के विवेक ने इस ' मत ' या असत्य को सिरे से नकार दिया और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इस सिद्धांत के माध्यम से सत्य को विकृत करके भारतीयों का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है तथा उनके धन को लूटकर ब्रिटेन पहुँचाया जा रहा है ।

      विचारणीय है कि विवेक व्यक्ति के संदेह को दूर करता है । जब तक व्यक्ति में संदेह व्याप्त रहेगा , वह सत्य तक नहीं पहुँच सकता । जिस कारण से व्यक्ति में संदेहात्मक मनोवृत्ति विकसित हो रही है , विवेक उसकी जड़ तक पहुँचकर उसे समाप्त कर देता है । हालाँकि , इससे सहमत हुआ जा सकता है कि पूर्व में जिन बातों को लेकर धारणा थी कि उपर्युक्त मत पूर्णत : सत्य है ; अगर लोगों के मन में उस तथ्य की सटीकता को लेकर संदेह उत्पन्न नहीं होता , तो असत्य से सत्य की दिशा में हम पहला कदम नहीं बढ़ाते । लेकिन यह भी सत्य है कि अगर व्यक्ति संदेह में ही रहेगा तो अपने विवेक से अर्थात् सत्य - असत्य , नैतिक - अनैतिक और अन्य प्रतिमानों के आधार पर दूर करने का प्रयत्न नहीं करेगा , तो यह असंभव है कि वह सत्य तक पहुँच पाए । उदाहरणार्थ , ' न्यूटन ' जब पेड़ के नीचे बैठे हुए थे , तो सेब के गिरने से उनके मन में संदेह उत्पन्न हुआ । लेकिन सेब गिरने के कारणों का उन्होंने अवलोकन किया , न कि संदेह में ही जीवन गुजार दिया । विवेक के बल पर इस घटना के सत्य तक पहुँचने का प्रयास किया , तथा सेब गिरने का कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बताया । इस प्रकार न्यूटन ने विवेक के माध्यम से सत्य को खोज निकाला ।

             अब यहाँ पर अन्य सवाल यह भी उठता है कि क्या सत्य ' परिवर्तित ' होता रहता है अथवा मनुष्य अपने स्वार्थ के अनुरूप सत्य की व्याख्या भिन्न - भिन्न तरीके से करता है ? यह प्रश्न इसलिये भी प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि एक समय तक जिस बात या मत को सत्य माना जाता था , उसे बाद में सत्य से असत्य की श्रेणी में क्यों शामिल कर दिया जाता है ? वस्तुतः सत्य परिवर्तित नहीं होता है बल्कि उसके ऊपर अनेक परतें चढ़ी होती हैं । उन परतों को हटाकर हम सत्य की जड़ तक पहुँच नहीं पाते हैं । इसीलिये जो बात सत्य है , उसकी पहचान न करके हम उसके ऊपरी आवरण को ही सत्य समझ लेते हैं । फलतः भ्रम होना स्वाभाविक है । इसके अलावा मनुष्य अपने स्वार्थ के अनुरूप सत्य की विकृत व्याख्या करता रहता है । साधारण जन विकृत मत को ही प्रामाणिक सत्य मान लेते हैं । इस भ्रम को फैलाने में वह अपने ज्ञान का उपयोग कर सकता है । लेकिन विवेक सत्य के ऊपर की परतों को हटाकर उसकी तह तक जाने में समर्थ होता है । इसके लिये विवेक अनेक राहों से गुजरते हुए व उनसे सीखकर अपने अनुभव , परिश्रम व ज्ञान के सम्मिलित प्रयासों के जरिये सत्य को खोजता है । जैसे कि लंबे समय तक इसे सत्य माना जाता रहा कि महिलाएँ , पुरुषों की तुलना में कमज़ोर व हीन हैं । अतः उनके अधिकार भी पुरुषों से कम होने चाहिये । परंतु आधुनिक काल में विवेक प्रामाणिक सत्य तक पहुँचा कि महिलाएँ किसी भी तरह से पुरुषों की तुलना में कमजोर नहीं हैं । बल्कि इस असत्य के मूल में- पितृसत्तात्मक व्यवस्था है । सिमोन - द - बोउवार लिखती भी हैं- “ स्त्री पैदा नहीं होती , बना दी जाती है । "

             उपर्युक्त विवरण के पश्चात् अंततः निष्कर्षस्वरूप कहा जा सकता है कि विवेक , तर्क - वितर्क , सत्य - असत्य , समस्त पक्षों का सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए व अभ्यास तथा व्यावहारिक अनुप्रयोग से सत्य को खोज लेता है । यह उन सभी मतों का एकसाथ खंडन कर देता है , जो असत्य होते हुए भी सत्य जैसे प्रतीत होते हैं और जिन्हें लेकर समाज में लगभग स्वीकारोक्ति है कि ये मत सत्य हैं । लेकिन विवेक , इन बातों की अपने स्तर पर जाँच करता है । सभी कसौटियों पर पूर्णतः खरा उतरने के बाद ही उन्हें सत्य की श्रेणी में स्वीकार करता है , अन्यथा उन्हें अस्वीकार कर देता है । भले ही पूरा समाज उस बात से सहमत क्यों न हो । प्रसिद्ध कहावत है कि ' किसी झूठ को अगर हज़ार बार बोला जाए , तो वह लोगों को सत्य जैसा लगने लगता है । ' किंतु विवेक गहराई में जाकर सत्य की खोज करता है । इस संदर्भ में निम्नलिखित पंक्तियाँ अत्यंत प्रासंगिक हो जाती हैं

                 राजा बोला रात है 
                 रानी बोली रात है 
                 मंत्री बोला रात है 
                संतरी बोला रात है 
          ये सुबह - सुबह की बात है !

            परंतु विवेक , किसी अन्य व्यक्ति या मत के द्वारा नियंत्रित नहीं होता अपितु निष्पक्षतापूर्वक सत्य तक पहुँच जाता है कि वास्तव में सुबह है या रात ? इसीलिये प्राचीनकाल से ही विवेक को प्रमुख ' सद्गुण ' की श्रेणी में रखा जाता है । वर्तमान सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के युग में जबकि सूचनाओं का अत्यधिक भ्रमजाल है और ' फेक न्यूज़ ' का प्रचलन भी काफी अधिक है , ऐसे में कौन - सी घटना सत्य है और कौन - सी असत्य , इस बात की पहचान कर पाना अत्यधिक कठिन हो गया है । इन परिस्थितियों में विवेक की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है , वही सत्य को खोज सकता है । असत्य सूचनाओं के भ्रमजाल से विवेकशील मनुष्य ही स्वयं को दूर रख सकता है तथा उनकी पहचान कर सकता है । हालाँकि , सत्य को खोजने की प्रक्रिया अनवरत् चलने वाली है । हो सकता है कि आज जिसे हम सत्य मानते हैं , उसे कल विवेक के द्वारा परखा जाए , तो वह असत्य निकल जाए । आज भी हम संपूर्ण ब्रह्मांड एवं पृथ्वी के गर्भ में छिपे कितने ही सत्य की खोज नहीं कर सके हैं । आशा है कि भविष्य में विवेक के द्वारा हम इनसे जुड़े हुए बहुत से अनसुलझे सत्य की भी पहचान कर सकेंगें । कुल मिलाकर विवेक सत्य को खोज ही निकालता है , और यह प्रक्रिया मानवीय सभ्यता के प्रारंभ से चल रही है , तथा भविष्य में भी चलती रहेगी ।


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