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  कृषि संकट और सुधार (Agrarian Crisis and Reforms)

   कृषि संकट (Agrarian Crisis) - कारण और परिणाम

    भारत में कृषि संकट के कई कारण हैं, जिनका असर न केवल किसानों की आय पर पड़ता है, बल्कि पूरे समाज और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालता है।

  1. मौसम और जलवायु परिवर्तन

    अनियमित मानसून: भारत के अधिकांश हिस्सों में कृषि मानसून पर निर्भर करती है। मानसून का असमय होना या बारिश की कमी, फसलों को गंभीर नुकसान पहुँचाती है।

    जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की असमानता, सूखा, और बर्फबारी की अनुपस्थिति जैसे मुद्दे बढ़े हैं। इससे किसानों की उपज और उनके जीवनयापन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।


  2. कृषि की घटती लाभप्रदता

    भूमि की उपजाऊ क्षमता में कमी: अधिकाधिक भूमि का खेती के लिए उपयोग करने से मृदा की गुणवत्ता में गिरावट आई है। रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मृदा की जैविक विविधता को नुकसान पहुँचाता है।

    पानी की कमी: जल संकट भी कृषि संकट का एक बड़ा कारण बन चुका है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसी जगहों पर भूजल स्तर नीचे गिरता जा रहा है।


  3. किसानों की वित्तीय समस्याएँ

    कृषि ऋण: किसान अक्सर उधारी लेकर अपनी खेती करते हैं, और यदि उत्पादन अच्छा नहीं होता, तो वे ऋण चुकता नहीं कर पाते। इसके कारण वे कर्ज के जाल में फँस जाते हैं।

    कम समर्थन मूल्य (MSP): MSP के माध्यम से सरकार किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करती है, लेकिन बहुत से उत्पादों के लिए MSP पर्याप्त नहीं होता। इसके कारण किसान अपने उत्पाद को सही मूल्य पर बेचने में असमर्थ रहते हैं।


  4. बाजार की समस्याएँ

    बिक्री की समस्याएँ: कई बार किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए उचित बाजार नहीं मिल पाते। इसके अलावा, बिचौलियों द्वारा उत्पादों का मूल्य कम करके किसानों का शोषण होता है।

    कृषि उत्पादों का सही मूल्य निर्धारण नहीं होना: कृषि उत्पादों की कीमतें अक्सर अत्यधिक अस्थिर रहती हैं, जो किसानों के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं।


  5. कृषि क्षेत्र में निवेश की कमी

    तकनीकी कमी: कृषि क्षेत्र में नई तकनीक और आधुनिक उपकरणों का बहुत कम इस्तेमाल होता है। कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार और निवेश की कमी है।

    प्रशिक्षण और शिक्षा की कमी: किसानों को नई कृषि विधियों और तकनीकों का प्रशिक्षण नहीं मिल पाता, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।


  कृषि संकट के प्रभाव (Impact of Agrarian Crisis)

    कृषि की आय में गिरावट: संकट के कारण किसानों की आय में लगातार गिरावट हो रही है, जिससे उनका जीवनस्तर प्रभावित हो रहा है।

    ग्रामीण पलायन: कृषि क्षेत्र में संकट के कारण, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन बढ़ रहा है। यह शहरीकरण और श्रम बल की कमी का कारण बन रहा है।

    किसानों की आत्महत्या: भारतीय कृषि क्षेत्र में आत्महत्या की दर बेहद चिंता का विषय है। लगातार बढ़ते कर्ज, खराब मौसम और विपरीत परिस्थितियाँ किसानों को आत्महत्या की ओर धकेलती हैं।

    संवेदनशीलता: किसानों की आर्थिक स्थिति में बदलाव न केवल उनके परिवारों के लिए, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरे का कारण बन सकता है।


कृषि संकट और सुधार (Agrarian Crisis and Reforms)


कृषि सुधार (Agricultural Reforms)

    कृषि संकट से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई सुधार उपायों की शुरुआत की है, जिनका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों की स्थिति को बेहतर बनाना है।


  1. किसान आय बढ़ाने के प्रयास

    प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): इस योजना के तहत, सरकार छोटे किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता देती है, ताकि उन्हें अपनी कृषि गतिविधियाँ सुचारु रूप से चलाने के लिए समर्थन मिल सके।

    कृषि बीमा योजना: फसल बीमा योजना के तहत, किसानों को मौसम संबंधी असमानी आपदाओं से बचाव के लिए बीमा कवरेज प्रदान किया जाता है।


  2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)

    MSP प्रणाली: भारत सरकार ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित किया है ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके। हालांकि, कई बार यह मूल्य खेती की वास्तविक लागत से कम होता है, इसलिए MSP पर सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

    कृषि उत्पादों की खरीद: सरकार ने अधिकतर खाद्य फसलों की खरीद MSP पर शुरू कर दी है, लेकिन यह खरीद प्रक्रिया अब भी बहुत सीमित है और समय-समय पर इसमें सुधार की आवश्यकता है।


  3. कृषि सुधार विधेयक (2020)

    कृषि बिल: 2020 में केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों का प्रस्ताव दिया था—

    कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020: इसका उद्देश्य किसानों को मंडी से बाहर अपनी फसल बेचने की अनुमति देना था।

    कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक, 2020: यह किसानों और निजी व्यापारियों के बीच अनुबंध को बढ़ावा देता था।

    आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020: इससे सरकार को कृषि उत्पादों के स्टॉक पर सीमाएँ लगाने में बदलाव किया गया।

    हालांकि, इन कानूनों को लेकर किसानों ने विरोध किया और इन्हें लागू करने में कठिनाइयाँ आईं, लेकिन सरकार ने अंततः इन कानूनों को वापस ले लिया।


  4. जलवायु परिवर्तन और जल प्रबंधन

    नहरीकरण और सिंचाई सुधार: भारत में जल प्रबंधन की बड़ी समस्या है। सिंचाई परियोजनाओं जैसे नमामि गंगे योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) किसानों को सिंचाई के संसाधन उपलब्ध कराती है।

    जलवायु अनुकूल कृषि: सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए जलवायु स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने की कोशिश की है।


  5. कृषि के डिजिटलीकरण

    ई-नाम (eNAM): यह एक राष्ट्रीय कृषि बाजार है, जो किसानों को पूरे देश के विभिन्न मंडियों में अपनी उपज बेचने की सुविधा प्रदान करता है। यह बिचौलियों को हटाने और कीमतों को पारदर्शी बनाने का प्रयास है।

    कृषि तकनीकी सेवाएँ: मोबाइल ऐप्स और तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल किसानों को मौसम, कीट प्रबंधन, और फसल उत्पादन की जानकारी देने के लिए किया जा रहा है।


  निष्कर्ष

        कृषि संकट एक जटिल समस्या है जिसका समाधान केवल आर्थिक नीतियों से नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक, जलवायु, और प्रौद्योगिकी बदलावों के माध्यम से किया जा सकता है। इन सुधारों को प्रभावी बनाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके अलावा, सरकार को इन सुधारों के कार्यान्वयन में पारदर्शिता, समावेशिता और किसानों की आवाज़ को प्रमुखता देनी चाहिए।


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