भारत के प्रमुख किसान आंदोलन: एक विस्तृत अध्ययन (Major Peasant Movement of India: A Detailed Study)
प्रस्तावना
भारत का इतिहास केवल राजाओं, साम्राज्यों और युद्धों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसकी आत्मा आम जनता—विशेषतः किसानों—में बसती है। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, जहाँ किसान समाज की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं। परंतु विडंबना यह है कि इन्हीं किसानों को सदियों से शोषण, अन्याय और उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। किसान आंदोलनों का इतिहास हमें यह दिखाता है कि कैसे भारत के कृषकों ने अत्याचार, करों की अधिकता, भूमि सुधारों की मांग और सामाजिक न्याय के लिए समय-समय पर विद्रोह किया।
1. प्रारंभिक किसान आंदोलन (18वीं - 19वीं शताब्दी)
(i) संन्यासी और फकीरी विद्रोह (1770-1800)
बंगाल में अकाल (1770) और कंपनी के अत्याचारों के विरोध में संन्यासियों और फकीरों ने विद्रोह किया।
ये आंदोलन धार्मिक स्वरूप में थे लेकिन इनका प्रमुख कारण किसानों पर अत्यधिक लगान और भूखमरी थी।
इस विद्रोह को कंपनी ने सैन्य शक्ति से इसे दबा दिया।
(ii) चंपारण सत्याग्रह (1917)
स्थान: बिहार के चंपारण जिला
नेता: महात्मा गांधी
पृष्ठभूमि: ‘तीनकठिया प्रथा’ के अंतर्गत अंग्रेज किसानों से जबरन नील की खेती कराते थे।
परिणाम: गांधीजी के हस्तक्षेप से तीनकठिया प्रथा समाप्त हुई। यह भारत में गांधीजी का पहला सफल सत्याग्रह था।
2. औपनिवेशिक काल के अन्य किसान आंदोलन
(i) डेक्कन विद्रोह (1875): महाराष्ट्र का दक्कन दंगा
क्षेत्र: पुणे और अहमदनगर के गाँव
कारण: भूमि कर, साहूकारों का शोषण, व्यापारिक फसल की विफलता
किसान साहूकारों पर हमला करते थे, ऋण-पत्र जलाए गए।
ब्रिटिश सरकार ने ‘Deccan Agriculturists Relief Act’ पारित किया।
(ii) पावनार और खेड़ा सत्याग्रह (1918)
खेड़ा (गुजरात) में किसानों की फसलें खराब हुईं, पर सरकार ने कर माफ नहीं किया।
गांधीजी, वल्लभभाई पटेल और इंद्रजीत मेहता ने नेतृत्व किया।
परिणामस्वरूप सरकार ने कर माफी दी।
(iii) बारडोली सत्याग्रह (1928)
स्थान: गुजरात
नेता: सरदार वल्लभभाई पटेल
मुद्दा: कर में 22% की वृद्धि
किसानों ने सामूहिक कर न देने का आंदोलन चलाया।
सरकार को झुकना पड़ा; कर वृद्धि वापस ली गई।
पटेल को “सरदार” की उपाधि मिली।
3. भारत के प्रमुख किसान आंदोलनों का कालक्रमानुसार विवरण
(i) बंगाल का नील विद्रोह (1859-60)
नील की जबरन खेती के खिलाफ।
किसान नील की जगह खाद्यान्न की खेती करना चाहते थे।
आंदोलन ने बड़ा रूप लिया, कई जगह दंगे हुए।
‘नील आयोग’ गठित हुआ और नील की खेती पर प्रतिबंध लगा।
(ii) पाबना आंदोलन (1873-76)
क्षेत्र: पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश)
मुद्दा: ज़मींदारों द्वारा अवैध रूप से कर वसूली
नेता: कनाईलाल दत्त, शिवनाथ शास्त्री
शांतिपूर्ण आंदोलन
सरकार ने कुछ सुधार लागू किए।
(iii) एका आंदोलन (1920-22)
नेता: बाबा रामचंद्र (फिजी से आए संत)
‘किसान सभा’ का गठन
ज़मींदारी व्यवस्था के अंत की मांग
गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गया।
4. किसान सभा आंदोलन (1930-1940 के दशक)
(i) अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS)
स्थापना: 1936, लखनऊ में
प्रथम अध्यक्ष: स्वामी सहजानंद सरस्वती (बिहार)
उद्देश्य: भूमि सुधार,लगान में कमी,कर्ज माफी,ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन
(ii) तेलंगाना किसान विद्रोह (1946-51)
क्षेत्र: हैदराबाद राज्य
नेता: कम्युनिस्ट पार्टी
निज़ाम और ज़मींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष
लगभग 3000 गांवों पर किसानों का नियंत्रण
भारतीय सेना ने जाकर इसे दबाया ।
(iii) त्रावणकोर किसान आंदोलन (1938)
केरल के चेरानमाडे और अन्य गाँवों में भूमि अधिकार की मांग
यह आंदोलन भूदान आंदोलन से भी प्रेरित था।
6. स्वतंत्रता के बाद के प्रमुख किसान आंदोलन
(i) तेलंगाना पुनः विद्रोह (1950 के दशक)
भूमि पुनर्वितरण और दलित किसानों के अधिकारों को लेकर संघर्ष
भूमिहीनों को भूमि दिलाने का आंदोलन
(ii) नक्सलबाड़ी आंदोलन (1967)
क्षेत्र: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला
नेता: चारू मजूमदार, कानू सान्याल
भूमि सुधार और ज़मींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष
यहीं से नक्सलवाद की शुरुआत मानी जाती है
(iii) भूदान आंदोलन (1951)
नेता: विनोबा भावे
ज़मींदारों से भूमि दान लेने की अपील
लाखों एकड़ भूमि किसानों को वितरित हुई
परंतु क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार और भूमि की गुणवत्ता की समस्या
(iv) महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन आंदोलन (1970-80)
नेता: शरद जोशी
मुद्दा: कृषि उपज के उचित मूल्य, सिंचाई और कर्ज
बाजारों में किसानों की भागीदारी की मांग
7. समकालीन किसान आंदोलन
(i) मंदसौर किसान आंदोलन (2017)
स्थान: मध्य प्रदेश
मुद्दा: कर्ज माफी, समर्थन मूल्य
पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत
(ii) 2020-21 किसान आंदोलन (तीन कृषि कानूनों के खिलाफ)
केंद्र सरकार ने 3 कृषि कानून लाए:
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम
मूल्य आश्वासन पर कृषि सेवा अधिनियम
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम
पंजाब, हरियाणा, यूपी के किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे।
किसान संगठनों की मांग:
तीनों कानूनों की वापसी
MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी का कानून
परिणाम: सरकार ने आंदोलन के एक वर्ष बाद कानून वापस लिए।
8. किसान आंदोलनों के प्रमुख कारण
भूमि अधिकार की समस्या
अधिक कर और कर्ज
फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलना
सरकारी नीतियों की असफलता
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ
बिचौलियों और साहूकारों का शोषण
9. किसान आंदोलनों की विशेषताएँ
प्रारंभिक आंदोलन स्थानीय और असंगठित थे।
धीरे-धीरे इनका संगठित और वैचारिक रूप बढ़ा।
वामपंथी दलों, गांधीवादी विचारधारा और किसान सभाओं का बड़ा योगदान रहा।
हाल के आंदोलनों में सोशल मीडिया और जन-जागरूकता का बड़ा रोल रहा।
निष्कर्ष
भारत में किसान आंदोलन एक जीवंत सामाजिक प्रक्रिया रहे हैं जो केवल कृषि से संबंधित मुद्दों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के प्रश्न भी उठाए हैं। किसान आंदोलनों ने भारतीय राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित किया है।
किसानों की आवाज़ को बार-बार दबाया गया, पर उन्होंने हर बार संघर्ष किया और अधिकारों की रक्षा के लिए डटे रहे। आज भी किसानों की समस्याएं कायम हैं, लेकिन उनके आंदोलनों ने यह सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में जनता की शक्ति सर्वोपरि है
major farmer movement of india,भारत के प्रमुख किसान आंदोलन,किसान आंदोलन,kisan andolan,bharat ke kisan andolan,चंपारण सत्याग्रह,खेड़ा,बारडोली सत्याग्र major farmer movement of india,भारत के प्रमुख किसान आंदोलन,किसान आंदोलन,kisan andolan,bharat ke kisan andolan,चंपारण सत्याग्रह,खेड़ा,बारडोली सत्याग्र major farmer movement of india,भारत के प्रमुख किसान आंदोलन,किसान आंदोलन,kisan andolan,bharat ke kisan andolan,चंपारण सत्याग्रह,खेड़ा,बारडोली सत्याग्र major farmer movement of india,भारत के प्रमुख किसान आंदोलन,किसान आंदोलन,kisan andolan,bharat ke kisan andolan,चंपारण सत्याग्रह,खेड़ा,बारडोली सत्याग्र ,भारत के प्रमुख किसान आंदोलन (Major farmer movement of India)
Post a Comment