प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ एवं उनकी सहायक नदियाँ: एक समग्र विश्लेषण (Rivers of Peninsular India and their Tributaries: A Comprehensive Analysis)
भूमिका
भारत एक नदीप्रधान देश है जहाँ नदियाँ न केवल जल की आवश्यकता को पूरा करती हैं, बल्कि कृषि, ऊर्जा उत्पादन, परिवहन और सांस्कृतिक जीवन में भी प्रमुख भूमिका निभाती हैं। भारत को दो प्रमुख भौगोलिक भागों में बाँटा जा सकता है — हिमालयी क्षेत्र और प्रायद्वीपीय क्षेत्र। प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ मुख्य रूप से प्राचीन पठारों से निकलती हैं और इनके जलप्रवाह की दिशा पूर्व या पश्चिम की ओर होती है। यह नदियाँ वर्षा पर निर्भर होती हैं, जिससे इनका जलप्रवाह ऋतु पर आधारित होता है।
प्रायद्वीपीय भारत की भौगोलिक संरचना
प्रायद्वीपीय भारत, भारतीय उपमहाद्वीप का दक्षिणी भाग है, जो तीन ओर समुद्र से घिरा है — पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में हिन्द महासागर। यह क्षेत्र मुख्यतः दक्कन का पठार, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और तमिलनाडु का समतल तटीय क्षेत्र शामिल करता है। यह क्षेत्र कठोर क्रिस्टलीय चट्टानों से बना है जो नदियों की दिशा और बहाव को प्रभावित करता है।
प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियाँ
1. गोदावरी नदी
उत्पत्ति: महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर से।
लंबाई: लगभग 1465 किमी।
दिशा: पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
राज्य: महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, ओडिशा।
उपनाम: ‘दक्षिण गंगा’।
मुख्य सहायक नदियाँ: प्रवरा, पेनगंगा, इंद्रावती, मंझरा, सबरी, मन्याड
इनमें इंद्रावती और सबरी प्रमुख हैं जो बाएं किनारे से जुड़ती हैं।
महत्व: गोदावरी बेसिन भारत का सबसे बड़ा नदी बेसिन है। कृषि, सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2. कृष्णा नदी
उत्पत्ति: पश्चिमी घाट के महाबलेश्वर से (महाराष्ट्र)।
लंबाई: लगभग 1400 किमी।
राज्य: महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश।
मुख्य सहायक नदियाँ: भीमा (सबसे बड़ी सहायक), माला प्रभा, घटप्रभा, तूंगभद्रा, मूसी
तूंगभद्रा का अपना महत्व है क्योंकि यह कर्नाटक में बहते हुए बहुत बड़े क्षेत्र की सिंचाई करती है।
महत्व: कृष्णा नदी का बेसिन दक्षिण भारत के लिए कृषि का एक बड़ा स्रोत है। इस पर कई प्रमुख बांध बने हैं जैसे – नागार्जुन सागर, श्रीशैलम आदि।
3. कावेरी नदी
उत्पत्ति: कर्नाटक के कोडागु जिले के तालकावेरी से।
लंबाई: लगभग 800 किमी।
राज्य: कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल का कुछ भाग।
मुख्य सहायक नदियाँ: हेमावती, भवानी, अमरावती, अर्कावती, लक्ष्मण तीर्थ
भवानी और अमरावती तमिलनाडु में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
महत्व: कावेरी नदी तमिलनाडु और कर्नाटक के लिए जीवनदायिनी है। इस पर मेट्टूर और कृष्णराज सागर जैसे महत्वपूर्ण बांध बनाए गए हैं।
4. नर्मदा नदी
उत्पत्ति: अमरकंटक पठार (मध्य प्रदेश)।
लंबाई: लगभग 1312 किमी।
दिशा: पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में गिरती है।
राज्य: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात।
मुख्य सहायक नदियाँ: तान, शिवना, शेर, दूधी, बंजर
नर्मदा के दोनों ओर गहरी घाटियाँ बन गई हैं – नर्मदा घाटी।
महत्व: नर्मदा नदी भारत की सबसे बड़ी पश्चिमवाहिनी नदी है। इस पर सरदार सरोवर परियोजना जैसे विशाल जलप्रकल्प हैं।
5. ताप्ती (तापी) नदी
उत्पत्ति: सतपुड़ा की मुलताई पहाड़ियों से।
लंबाई: लगभग 724 किमी।
राज्य: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात।
दिशा: पश्चिम की ओर बहती है और अरब सागर में गिरती है।
मुख्य सहायक नदियाँ: पुर्णा, गिरना, पांजरा, बोर, माइन
महत्व: ताप्ती घाटी में सूरत जैसे महत्वपूर्ण नगर बसे हैं। इस पर उकई परियोजना है।
6. माही नदी
उत्पत्ति: मध्य प्रदेश के धार जिले में।
लंबाई: लगभग 583 किमी।
विशेषता: यह नदी दो बार उष्णकटिबंधीय रेखा को पार करती है।
राज्य: मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात।
सहायक नदियाँ: सोम, अंसर, मोरल
7. पेरियार नदी (केरल)
उत्पत्ति: पश्चिमी घाट, शिवगिरी की पहाड़ियों से।
राज्य: केरल
महत्व: यह केरल की सबसे लंबी और प्रमुख नदी है। इसकी जलविद्युत परियोजना व पर्यटन स्थल प्रसिद्ध हैं।
8. वेलारु और स्वर्णमुखी (तमिलनाडु), वैगई नदी
वैगई नदी मदुरै से होकर बहती है और तमिल संस्कृति में इसका महत्व अत्यधिक है।
प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषताएँ
पठारी स्रोत: इन नदियों का उद्गम पुराने क्रिस्टलीय चट्टानों में होता है।
वर्षा पर निर्भर: अधिकांश नदियाँ मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती हैं, जिससे उनका जलप्रवाह ऋतु अनुसार बदलता है।
संकीर्ण जलग्रहण क्षेत्र: हिमालयी नदियों की तुलना में इनका जलग्रहण क्षेत्र छोटा होता है।
जलप्रपातों का निर्माण: इनकी ढाल तीव्र होती है, जिससे जलप्रपात बनते हैं – जैसे कि होगेंक्कल और जोग फॉल्स।
डेल्टा का निर्माण: पूर्ववाहिनी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में विस्तृत डेल्टा बनाती हैं (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी)।
प्रायद्वीपीय नदियाँ और मानव जीवन
1. कृषि में योगदान:
इन नदियों से सिंचाई होती है – रबी और खरीफ दोनों फसलों के लिए।
डेल्टा क्षेत्रों में धान और नारियल की खेती होती है।
2. जलविद्युत उत्पादन:
पश्चिमी घाटों की ढाल से बहती नदियाँ जलविद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल हैं।
3. बांध और परियोजनाएँ:
सरदार सरोवर (नर्मदा), नागार्जुन सागर (कृष्णा), मेट्टूर (कावेरी), उकई (ताप्ती)
यह परियोजनाएँ जलभंडारण, बाढ़ नियंत्रण, और विद्युत उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
4. पर्यटन और संस्कृति:
नदियाँ धार्मिक स्थल, तीर्थयात्रा और पर्वों का केंद्र हैं – जैसे कि कावेरी के किनारे कुंभ मेला, नर्मदा परिक्रमा आदि।
जल संकट एवं पर्यावरणीय चुनौतियाँ
मानसून की अनियमितता के कारण जल की अनुपलब्धता।
अत्यधिक बांध निर्माण से पारिस्थितिकी संतुलन प्रभावित।
नदियों में प्रदूषण (घरेलू व औद्योगिक कचरे के कारण)।
बालू खनन से नदियों की धारा में परिवर्तन।
संरक्षण के उपाय
जल पुनर्भरण (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देना।
नदी जोड़ों की योजना को पर्यावरण संतुलन के साथ लागू करना।
जैविक खेती व कम रसायनिक उपयोग से प्रदूषण में कमी।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी द्वारा नदी पुनरुद्धार।
निष्कर्ष
प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ भारत की जीवनरेखा हैं। वे न केवल सिंचाई और जलापूर्ति का कार्य करती हैं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। इनका संरक्षण और टिकाऊ उपयोग न केवल पारिस्थितिकी के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है। सरकार, समाज और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर इन नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों का सतत विकास करना होगा ताकि जल संकट की समस्याओं का समाधान हो सके
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