भारतीय सिनेमा
परिचय
एशिया के विशाल फिल्म उद्योगों में भारत का प्रमुख स्थान है । भारतीय फिल्म उद्योग विश्व में सबसे अधिक फिल्मों के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है । यहाँ हिंदी , तेलुगू , तमिल , भोजपुरी इत्यादि में भी फिल्में बनाई जाती हैं । 2014 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार , प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग 3000 सेल्युलाइड फिल्मों का निर्माण होता है , जिनका वर्गीकरण 1000 लघु और 1969 फीचर फिल्मों के रूप में किया जा सकता है ।
हाल ही में , फिल्म क्षेत्र में सम्पूर्ण ( 100 % ) एफ.डी.आई. या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान करने का प्रावधान पारित किया गया , जिसके पश्चात् प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मीडिया घरानों , जैसे- 20 वीं सेंचुरी फॉक्स , वारनर ब्रदर्स आदि ने भारतीय फिल्म निर्माण में निवेश किया । इसी के कारण कुछ विदेशी फिल्म निर्देशकों ने भी भारत से जुड़े सामाजिक - सांस्कृतिक विषयों का चयन किया है ।
भारतीय सिनेमा का महत्व
☆ स्वतंत्रता के बाद निर्मित अधिकांश फिल्मों ने हमारे नागरिकों तथा देश को एक राष्ट्र के रूप में पहचान दी है ।
☆ इनसे हमें भारतियों के सामाजिक - आर्थिक और राजनीतिक अस्तित्व और समय के साथ इनमें हो रहे परिवर्तनों को समझने और प्रस्तुत करने में सहायता मिली है ।
☆ अधिकांश प्रायोगिक अध्ययनों से पता चलता है कि सामान्य लोगों की मानसिकता पर फिल्मों का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है और लोग फिल्म के नायक और नायिका के चरित्र के साथ इस प्रकार सहानुभूति दर्शाते हैं कि मानों वे वास्तविक चरित्र हों ।
☆ यह केवल तीन घंटे का मनोरंजन ही नहीं है अपितु एक ऐसी भावना है जिसे सामान्य रूप से लोग अपने साथ समेट ले जाते हैं और उसके साथ ही जुड़े रहना चाहते हैं ।
☆ दो प्रकार के सिनेमा होते हैं - पहला , मनोरंजन के लिए और दूसरा , जो की जीवन की दिन - प्रतिदिन कि वास्तविकता से हमारा परिचय कराता है , जिसे हम ' वैकल्पिक ' या समानांतर सिनेमा ( Parallel Cinema ) कहते हैं ।
☆ यह केवल शहरी महानगरों में ही उपलब्ध नहीं है , अपितु यह अब ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में भी पहुंच गया है ।
भारतीय सिनेमा का इतिहास
चलचित्र की अवधारणा को भारत में लुमियर बन्धु ( जो कि सिनेकैमरा के अन्वेषक के रूप में प्रसिद्ध हैं ) लाए थे । वर्ष 1896 में उन्होंने छह मूक लघु फिल्में बंबई में प्रदर्शित की थीं , जो उस समय के दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहीं । पहली फिल्म का शीर्षक कोकोनट फेयर ( Coconut fair ) और हमारा भारतीय साम्राज्य ( Our Indian empire ) था और उन्हें एक अज्ञात फोटोग्राफर ने वर्ष 1897 में शूट किया था ।
कालरेलो और कोर्नेग्लिया नामक एक इटली के युगल ने बम्बई के आजाद मैदान में टेंट लगाकर फिल्मों का प्रदर्शन करके एक नई एवं बड़ी पहल की । उसके बाद तो बम्बई में लघु फिल्मों की बाढ़ - सी आ गयी थी , जैसे- दी डेथ ऑफ नेल्सन , नोहाज आर्क नामक फिल्मों का वर्ष 1898 में प्रदर्शन किया गया ।
पर यह सब विदेशी प्रयास थे , जो ब्रिटिश और भारत में उनके साम्राज्य पर केंद्रित थे । किसी भारतीय द्वारा चलचित्र का पहला प्रयास हरीशचन्द्र भटावडेकर द्वारा किया गया था , जिन्हें सेव दादा ( Save Dada ) के नाम से भी जाना जाता है । उन्होंने वर्ष 1896 एवं 1899 में दो लघु फिल्मों का निर्माण कर प्रदर्शित किया था । वर्ष 1900 में बहुत कम भारतीय फिल्म निर्माता इस कार्य में लगे हुए थे पर उनमे सबसे उल्लेखनीय एफ . बी . थानावाला थे , जिन्होंने ताबूत प्रोसेशन और स्प्लेंडिड न्यू वीयूज ऑफ बॉम्बे का निर्माण किया था । इसके अतिरिक्त वर्ष 1903 में हीरालाल सेन भी अपने चलचित्र इंडियन लाईफ एंड सीन्ज के लिए जाने गए ।
धीरे - धीरे इन चलचित्रों का बाजार बढ़ने लगा था और चूंकि इनका प्रदर्शन अस्थाई स्थानों पर किया जाता था , इसलिए सर्वप्रथम सिनेमाघर स्थापित करने की आवश्यक्ता अनुभव हुई । इस आवश्यक्ता को मेजर वारविक ने पूरा किया , जिन्होंने वर्ष 1900 में मद्रास ( अब चेन्नई ) में पहला सिनेमाघर स्थापित किया था । इसके पश्चात् एक धनी भारतीय व्यापारी जमशेदजी मदान ने वर्ष 1907 में कलकत्ता ( अब कोलकता ) में एलफिन्स्टोन पिक्चर हाऊस की स्थापना की । उभरते हुए इस नए भारतीय बाजार से प्राप्त होने वाले लाभ को देखते हुए वर्ष 1916 में भारत में यूनिवर्सल स्टूडियोज ने पहली हॉलीवुड आधारित एजेंसी की स्थापना की ।
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